et cetera संबंधी

विषयाचं बंधन न ठेवता लिहायला हा ब्लॉग सुरू केलाय. इथे माहिती, आवडलेलं (इतरांचं) साहित्य, अघळपघळ असं काहीही असेल.

कुछ ऐसा भी होता है

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कुछ ऐसा भी होता है,
के आप दोस्त थे
लेकिन, फ़िर,
आप दोस्त न रहे
बीत गयी दोस्ती और दिन-राते
और
खाली हो गया इक झरना

कुछ ऐसा भी होता है
के आप हमदम थे
लेकिन, फ़िर,
आप हमदम न रहे
बीत गया प्यार, और दिन-राते
और
खाली हो गया एक झरना
बगीचे में

किसी रोज़ दिल किया,
कि करे उन से इज़हार
मगर फ़िर मन न हुआ
कि करे उन से इज़हार
फ़िर,
बीत गयी थी घडी़ 
गुजर गया था लम्हा
राख बन के
खो गये सारे अरमाँ-ओ-सपने
अचानक

फ़िर कभी ऐसा होता है,
कि कही भी न जाना है
पर ... कही तो जाना है
सब पार कर के
फ़िर निकल पडे,
और सदिया बीत गयी
शायद, इक पल में

अब क्या खोना है?
अब क्या पाना है?
सोच रहे,
के इस से क्या लेना देना है?
और जान गये,
के इस से न कोई लेना देना है! 
बंद हुआ अब फ़र्क पडना
थम गया अब फ़िक्र करना
और
खाली हो गया है इक झरना
बगीचें में



ब्रायन पॅटर्न यांच्या "समटाईम्स् इट् हॅपन्स्" ह्या कवितेचा स्वैर भावानुवाद करण्याचा प्रयत्न केलाय. कसा जमलाय हे तुम्हीच ठरवा. मूळ कविता मी फ़ेसबुकवर वाचली. इंटरनेटवर शोधल्यावर ह्या ब्लॉगपोस्टमध्ये सापडली.